हम वाही बन जाते है , जो हम बार बार करते है | इसलिए उत्कुष्ट्ता कोई कार्य नहीं है , बल्कि आदत है | जो कुछ हमारे भीतर है , उसकी तुलना में हमारे पीछे और आगे के मामले बहुत छोटे हैं |
Post a Comment